Finalists 2021

आदर्श वेदाध्यापक

वेद्मूरित श्री सी॰ वेङ्टकृष्ण घनपाठीजी कृष्ण यजुर्वेद के घनान्त विद्वान हैं। वेङ्टकृष्णजी का जन्म तमिलनाडू राज्य के चेन्नई महानगर में हुआ वेङ्टकृष्णजी ने वेदाध्ययन का आरम्भ 8 वर्ष की अवस्था में प्रारम्भ कर दश वर्ष के कठोर परिश्रम के बाद, घनपाठी की उपाधि श्री कांची कामकोटि पीठ के द्वारा प्राप्त की। तत्पश्चात् आपने महामहोपाध्याय ब्रह्मश्री मुल्लैवासल श्री कृष्णमूर्ति शास्त्री के मार्गदर्शन में ” वेद भाष्य रत्नं” की अध्ययन पूर्ण किया। वेङ्टकृष्णजी ने श्रीकांची परमाचार्यजी के परमानुग्रह, पूज्य पिताजी और गुरुजी श्री एन् चन्द्रशेखर के आशीर्वाद और प्ररेणा से चेन्नई के तिरुवान्यून्म्यूर में अपने भाई श्री हरीराम घनपाठि के साथ कृष्ण यजुर्वेद के अध्यापन हेतु श्री परमशिवेन्द्र सरस्वती वेद पाठशाला को विनयशीलता से शुभारम्भ किया।आपके द्वारा २५ वेद विद्यार्थियों ने वेदाध्ययन पूर्ण कराकर वेदसेवा में समर्पित किया है।

आदर्श वेदाध्यापक

वेदमूर्ति श्री अनन्तकृष्णजी भट्ट का जन्म कर्नाटक राज्य के दक्षिण कन्नड़ जिले की विटला सीमा में अमाई परिवार के पुरोहित कुल में हुआ। श्री अनन्तकृष्णजी भट्ट कृष्णयजुर्वेद के घनान्त विद्वान हैं।आपके पिताजी श्री नारायणजी भट्ट कृष्णयजुर्वेद बोधायनसूत्र के उच्च कोटि के विद्वान थे। बाल्यकाल में ही अपने पिताजी से प्रारम्भिक वैदिक शिक्षा प्राप्त कर कर्नाटक में सागर के वरदपुरा की पवित्र भूमि में श्रीधर संघ वेदविद्यालय में वेदाध्ययन किया। आपने श्री विश्वेश्वर भट्ट गुरूजी के सान्निध्य में कृष्णयजुर्वेद का मूलान्त अध्ययन, बोधायनप्रयोग और काव्य आदि संस्कृत विधाओं का अध्ययन किया। वेदमूर्ति श्रीभट्टजी ने मैसूर के महाराजा संस्कृत महाविद्यालय में श्रीनिवास ररङ्गाचार्यजी से क्रमान्त तथा श्री सुन्दरेशजी से घनान्त और पूर्व मीमांसा शास्त्रों का अध्ययन किया तथा स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। वेदमूर्ति श्री अनन्तकृष्णजी भट्ट वर्तमान में कर्नाटक सरकार के चामराजेन्द्र संस्कृत महाविद्यालय, बैंगलोर में कृष्णजयुरवेद में सहायकाचार्य के रूप में वेदसेवा प्रदान कर रहे हैं।

आदर्श वेदाध्यापक

वेदमूर्ति गुल्लपल्ली श्री सीतारामचन्द्रजी का जन्मस्थान दक्षिण भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के राजमहेन्द्री में 15 फरवरी-1966 को हुआ। गुल्लापल्ली श्री सीतारामचन्द्रजी कृष्णयजुर्वेद तत्तिरीयशाखा के सलक्षण घनान्त विद्वान हैं। आपने अपने पिताजी श्री वेदमूर्ति आञ्जनेयजी घनपाठी एवं अनेक विद्वानों के सान्निध्य में वेदाधयय्न के साथ वेदभाष्य, धर्मशास्त्र, साहित्य, वेदान्त आदि अनेक विषयों का अध्ययन किया। गुरुजी द्वारा 36 विद्यार्थियों का वैदिक शिक्षा प्रदान की गई हैं। श्री गुल्लपल्लीजी गुरुजी गृहस्थाश्रम के प्रधान कर्म नित्याग्निकर्म का पालन करते हैं। श्री गुरुजी को अपनी इस अमूल्य वेदसेवा के लिए भारतज्योति, आम्नायवाचस्पति जैसे अनेक प्रतिष्ठित अलंकरणों से अलङ्कृत किया गौआ हैं।

उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी

श्री आदित्य भगवान कुलकर्णीजी का जन्म महाराष्ट्र के औरङ्गाबाद में 20 मई 1997 को श्रीमती उमादेवी और श्री भगवानजी के घर पर हुआ। आदित्यजी ने श्री उद्गीथ वेदपाठशाला से वेदमूर्ति श्री तुकारामजी मुळे गुरुजी के सान्निध्य में सामवेद राणायणीय शाखा का मूलान्त, पदपाठ, ऊह-रहस्यगान, आरण्यक, मन्त्रब्राह्मण और सम्पूर्ण छान्दोग्योपनिषिद का अध्ययन पूर्ण किया। आदित्यजी ने श्रीशारदापीठ, अवधूत दत्तपीठ, वेदशास्त्रोत्तेजकसभा और सान्दिपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान जैसे प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों से सामवेद की परीक्षा उत्तीर्ण की हैं। आदित्यजी वर्तमान में ताण्ड्य महाब्राह्मण का अध्ययन कर रहे हैं। आदित्यजी अपने मन में आजीवन वेद्सेवा को समर्पण का संकल्प धारण किए हुए हैं।

उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी

श्री आनन्द रत्नाकर जोशी का जन्म-21 जुलाई-1994 को महाराष्ट्र राज्य के बीड़ जिले के मोगरा ग्राम में हुआ। श्री आनन्दजी जोशी श्रीमती राधिकाजी और श्री रत्नाकरजी के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं। श्री आनन्दजी ने डॉ. विजय कुमारपट्टजी जोशी के सान्निध्य में शुक्लयजुर्वेद काण्वशाखा का संहिता अध्ययन, श्री राघवेन्द्रजी घनपाठी के सान्निध्य में पद-क्रम-जटा-घन विकृती पाठों का अध्ययन, डॉ. वी. एस. प्रतापचन्द्रजी घनपाठी के सान्निध्य शिक्षा-प्रातिशाख्य-शतपथब्राह्मण का अध्ययन किया। वर्तमान में डॉ. वी. एस. प्रतापचन्द्रजी घनपाठी के सान्निध्य में श्रौतसूत्रों का अध्ययन कर रहे हैं। श्री आनन्द जी ने अपने वैदिक ज्ञान से वेदशलाका प्रतियोगिता में प्रथम स्थान तथा क्रमपरीक्षा में भी स्वर्णपदक प्राप्त किया है।

उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी

श्री दत्तदास शेवड़े सामवेद राणायणी शाखा के विद्यार्थी है।श्री दत्तदासजी का जन्म 24 जनवरी-1998 को महाराष्ट्र के लाजा ग्राम में सौभाग्यवती सुप्रियाजी और श्रीमान् रघुनाथजी शेवडे के घर हुआ। गोवा के कवळे ग्राम में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर महाराष्ट्र के अहमदनगर में श्री उद्गीथ वेद पाठशाला में वेदमूर्ति श्री तुकाराम दत्तात्रेय मुळे गुरुजी के सान्निध्य में रहस्यान्त तक अध्ययन किया।श्री दत्तराजजी ने सामवेद के संहिता, ऊह्य, मन्त्रब्राह्मण, रहस्यगान आदि का अध्ययन कर श्री दक्षिणाम्नाय शारदापीठ, शृङ्गेरी, श्री अवधूत दत्त पीठम्, मैसूर, श्री वेदशास्त्रोत्तेजक सभा, पुणे, महर्षि सान्दिपानि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन आदि अनेक प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों से सामवेद की परीक्षा उत्तीर्ण की। आप वर्तमान में अष्टमहाब्राह्मण के अध्ययन एवं संपूर्ण जीवन वेदसेवा में समर्पण हेतु दृढसंकल्पित हैं।

उत्तम वेद विद्यालय

“वेदोऽखिलो धर्म मूलम्” वेद सभी धर्मों के मूल है, इस भावना से परिपूर्ण तथा भारतीय संस्कृति एवं वैदिक श्रुति परम्परा के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रचार-प्रसार के मुख्य उद्देश्य से भारतीय सनातन वैदिक परम्परा के संवाहक वेदान्ताचार्य- श्री वाचस्पति जी शुक्ल ने मध्य प्रदेश के ह्रदय स्थल लुप्ततीर्थ हनुमत् धाम–आवन–राघौगढ़, गुना (म.प्र.) में वर्ष-1994 में राघौगढ़ के धर्मनिष्ठ यशश्वी राजा श्रीमान् दिग्विजय सिंह जी की अध्यक्षता में श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। पूज्य गुरूजी के सत्संकल्प के फलस्वरुप ट्रस्ट द्वारा वर्ष-2000 में 11 ब्रह्म बटुकों के प्रवेश के साथ निःशुल्क, आवासीय गुरुकुल–आचार्य वाचस्पति शुक्ल संस्कृत वेद विद्यालय का श्रीगणेश किया गया। वर्त्तमान में इस वेदविद्यालय में शुक्ल यजुर्वेद की माध्यान्दिन, सामवेद की कौथुम और अथर्ववेद की शौनक शाखा के अध्यापन के साथ आधुनिक विषयों का अध्यापन किया जा रहा है।

उत्तम वेद विद्यालय

पुणे वेदपाठशाला महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर के मध्य में स्थित है, पुणे वेद पाठशाला की स्थापना 12 अक्तुंबर-1881 को श्री पुरुषोत्तम गणेश नानलशास्त्रीजी की अध्यक्षता में हुई। इस वेदविद्यालय में ऋग्वेद की शाकल शाखा, शुक्लयजुर्वेद की माध्यन्दिनशाखा, कृष्णयजुर्वेद की तैत्तिरीयशाखा और सामवेद की राणायणीशाखा का अध्यापनकार्य किया जाता हैं। वेदाध्यापन के साथ ही बटुकों के सर्वाङ्गीण विकास हेतु आधुनिक विषयों का भी अध्यापनकार्य किया जाता हैं। सनातन वैदिक पूजन परम्परा में उत्कृष्टता हेतु पुणे वेदपाठशाला द्वारा विद्यार्थियों को पूजन परम्परा का भी अध्ययन कराया जाता हैं। विगत 141 वर्षों से वेदसेवा में समर्पित है।

उत्तम वेद विद्यालय

हमारी पवित्र धरोहर वेदों संरक्षण तथा वैदिक ज्ञान पिपासुओं की ज्ञान पिपासा को तृप्त करने के प्रमुख उद्देश्य से जगद्गुरु श्रीकाञ्ची शंकराचार्यजी के आशीर्वाद से श्री काशी विश्वनाथजी के पवित्र प्रांगण में पद्मभूषण से विभूषित स्वर्गीय पंडित श्री पी.एन.पट्टाभिराम शास्त्री जी द्वारा के वर्ष-1973 में हनुमानघाट पर श्री पट्टाभिरामशास्त्री वेदमीमांसा अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना की गई। यह पाठशाला स्थापना काल से वर्तमानकाल तक वेदसेवा में अनवरत रूप से समर्पित होते हुए वैदिक ज्ञान परम्परा और शास्त्रों के संरक्षण, अनुसंधान, प्रकाशन और विद्यार्थियों के प्रोत्साहन में प्रवृत्त है। 1982 में भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण ने “मीमांसा शास्त्रमाला“ प्रकाशन का लोकार्पण कर केन्द्र को सम्मानित किया है। केन्द्र द्वारा व्यास शिक्षा, त्रिपुरोपनिषद, संस्कारविज्ञान आदि अनेक ग्रन्थों का प्रकाशन किया गया है। पाठशाला में आठ वैदिक शाखाओं का ज्ञान प्राप्त कर अनेक विद्यार्थी विश्वभर में वेदसेवा में समर्पित है।

Finalists 2020

आदर्श वेदाध्यापक

वेदमूर्ति श्रीकृष्ण मधुकर पालस्करजी गुरूजी का जन्म महाराष्ट्र राज्य के वासीम जिले के अनसिंह ग्राम में 15 दिसंबर- 1969 को हुआ। श्रीकृष्ण मधुकरजी गुरुजी श्रीमती विमल बाई एवं श्रीमान् मधुकर बलिराम पलस्करजी के ज्येष्ठ पुत्र हैं। गुरूजी सामवेद राणायणी शाखा के सलक्षण विद्वान हैं। आपने वेदमूर्ति श्री विश्वेश्वररामजी भट्ट के सान्निध्य में सामवेद रहस्यान्त, अष्टब्राह्मण और श्रौग्रंथों का अध्ययन, वेदमूर्ति श्री गजाननजी भट्ट के सान्निध्य में ऋग्वैदिक कर्मकाण्ड का अध्ययन, महामहोपाध्याय श्री यज्ञेश्वर शास्त्री कस्तुरे गुरूजी के सान्निध्य में संस्कृत की अन्य विधाओं का अध्ययन किया। आप विगत तीस वर्षों से वेदाध्यायापन में संलग्न हैं। आपके द्वारा अभी तक 28 विद्यार्थियों को वेदाध्ययन कराया गया हैं, जो वर्त्तमान में देश के विभिन्न भागों में वेदाध्यापनकार्य में संलग्न हैं। श्रीकृष्णजी गुरूजी को इस अमूल्य सेवा हेतु शारदा पीठ से भारतीतीर्थ पुरस्कार, अवधूत दत्तपीठ द्वारा आस्थान विद्वान पुरस्कार जैसे अनेक प्रतिष्ठित अलंकरणों से अलंकृत किया गया हें।

आदर्श वेदाध्यापक

वेदमूर्ति श्री मधुर गोपालराव जोशी का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में सिद्धेश्वर कुरोली में हुआ। आपने सन्-1985 से सन्-2000 तक वेदमूर्ती श्रीशंकरदेव खटावकररजी, पंढरपुर के घनपाठी श्रीरामभाउजी वांगीकर, श्री गोपालशास्त्रीजी गोरे, श्रीशरद देशमुखजी, श्रीकृष्ण गोडशे गुरुजी तथा श्री विश्वनाथ जी जोशी के सान्निध्य में शुक्लयजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा का घनांत अध्ययन पूर्ण किया। अध्ययन के उपरान्त त्र्यंबकेश्वर में ही घर में सन्-2000 में वेदाध्यापन प्रारम्भ किया। आपने त्र्यंबकेश्वर में ही पंडित श्री भालचन्द्रशास्त्री द्वारा श्रीमद्भागवत का ज्ञान भी प्राप्त किया। आपने अनेक घनपाठी, क्रमपाठी विद्यार्थी तैयार किये जो वर्तमान में संपूर्ण भारतदेश को में अपनी वेदसेवा प्रदान कर रहे हैं। वेदमूर्ति श्री मधुर गोपालराव जोशी वर्त्तमान में त्र्यंबकेश्वर में शुक्ल यजुर्वेद और शतपथ ब्राह्मण का निस्वार्थ अध्यापन रहे हैं।

आदर्श वेदाध्यापक

वेदमूर्ति श्री आर. चन्द्रमौलि श्रौतिजी सामवेद कौथुम शाखा के सलक्षण के साथ ही श्रौत, स्मार्त, धर्मशास्त्र के मूर्धन्य विद्वान हैं। चन्द्रमौलिजी का जन्म 12 अक्तुंबर 1968 को तमिलनाडु राज्य के जिला तंजोर के नल्लूर ग्राम में हुआ। श्रौतिजी ने ब्रह्मश्री सुब्रह्मण्य शास्त्रिगल् के सान्निध्य में सामवेद का संपूर्ण अध्ययन्, सामवेदीय ब्राह्मण, यजुरवेदीय आपस्तब, बौधायन और सूत्र कारिका सहित, स्मार्त प्रयोग् आदि का अध्ययन किया। श्रौतिजी ने ब्रह्मश्री श्रीनिवास शास्त्रिगल् और परशुराम गणपाठिगल् के निर्देशन में अष्ट ब्राह्मण, श्रौतं, लक्षणम् और संस्कृत के अनेक काव्य ग्रंथों का भी अध्ययन किया। श्रौतिजी ने वर्ष-2000 से स्वयं के खर्च पर १८ विद्यार्थियों से वेदाध्यापन प्रारम्भ किया। अभी तक गुरूजी ने 32 विद्यार्थियों को संपूर्ण सामवेद में पारंगत कर चुके हैं। वर्तमान में 47 विद्यार्थी आपसे वेदाध्ययन कर रहे हैं। आपने अनेक सोमयज्ञों में उदगाता के रूप में सेवा प्रदान की हैं। आपकी वेदसेवा के लिए भारती तीर्थ पुरस्कर्, कुलपति, आम्नाय वाचस्पति और सामवेद सलक्षण विद्वान् जैसे अनेक पुरस्कारों से विभूषित किया जा चुका है।

उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी

श्री अतुल लक्ष्मण सीतापतिजी का जन्म महाराष्ट्र के मांजल ग्राम में 3 मई-1993 को श्रीमती उर्मिलाजी और श्रीमान् लक्षमण सीतापतिजी के घर हुआ।श्री अतुलजी ने सामवेद की राणायणी शाखा में रहस्यान्त तक अध्ययन वेदमूर्ति श्रीकृष्ण मधुकर पालस्कर गुरुजी के सान्निध्य में किया हैं।श्री अतुलजी श्रीकृष्ण मधुकरजी पालस्कर गुरुजी के सान्निध्य में ही शिक्षा, ज्योतिष, छन्द, निघण्टु आदि ग्रन्थों का अध्ययन कर वर्तमान में श्रौत ग्रन्थों का अध्ययन कर रहे हैं।श्री अतुलजी को अपने वेदाध्यन के दौरान वेदरत्न पुरस्कार, सामवेद विद्वान पुरस्कार, विद्वत् गौरव पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कारों से भी अलङ्कृत किया गया हैं।श्री अतुलजी सीतापति इस पवित्र सनातन वेदपरम्परा की गङ्गा के निर्बाध प्रवाह को बनाए रखने के लिए वेदाध्यापक के रूप में वेदसेवा में जीवन समर्पण हेतु संकल्पित हैं।

उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी

श्री रितेश कुलकर्णीजी का जन्म महाराष्ट्र के नान्देड में श्रीमती यमुनाबाई और श्रीमान् जीवनराव कुलकर्णीजी के यहाँ 27 जुलाई-1989 को हुआ ।श्री रितेश कुलकर्णीजी अथर्ववेद की शौनक शाखा के दशग्रन्थी हैं।आपने वेदमूर्ति श्री दिनकर जोशी गुरुजी के सान्निध्य में संहिता से दशग्रन्थों तक का अध्ययन किया तदनन्तर पूर्व में भारतात्मा आदर्श वेदाध्यापक पुरस्कार प्राप्त करने वाले वेदमूर्ति श्री श्रीधर अड़ी गुरुजी के सान्निध्य में वेदभाष्य का अध्ययन पूर्ण किया, कुलकर्णी जी ने वेदमूर्ति वंशीकृष्ण घनपाठीजी के सान्निध्य में संस्कृत व्याकरण एवं अन्य ग्रंथों का अध्ययन किया। कुलकर्णीजी विगत दश वर्षों से वेदाध्ययन के साथ-साथ महाभारत का भी अधययन कर रहे हैं। श्री रितेशजी आज भी नित्य स्वाध्याय के साथ महाभात का अध्ययन करते हैं।आपको इस अध्ययन-परिश्रम हेतु सच्चा साधक पुरस्कार, वेदरत्न पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कारों से भी विभूषित किया जा चुका हैं।श्री रितेशजी आजीवन वेदसेवा हेतु निज जीवन समर्पण के लिए दृढसंकल्पित हैं।

उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी

श्री शेखर बाळासाहेब कुलकर्णीजी का जन्म 22 जनवरी 1997 को महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के चोराखली ग्राम में हुआ। उपनयन संस्कार के उपरान्त श्री रामकृष्ण सरस्वती स्वामी द्वारा स्थापित श्री वेदान्त विद्यापीठ में वेदमूर्ति श्री अनन्त देवीदास चानसीकर गुरुजी के सान्निध्य में ऋग्वेद शाकल शाखा के मूल व पद-क्रमादि अष्टविकृति पाठ, ऐतरेय ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, पाणिनीय शिक्षा, लगध ज्योतिष, पिङ्गलनाग छन्द, निरुक्त, आश्वालयनश्रोतसूत्र, पाणिनीय अष्टाध्यायी और ऋग्वेद प्रातिशाख्यादि ग्रन्थों का अध्ययन किया।श्री शेखरजी ने वेदपोषक सभा, अवधूत दत्तपीठ, वेदान्तविद्यापीठ, से क्रमान्त की परीक्षा उत्तीर्ण की हैं।श्री शेखरजी ने अनेक वैदिक सम्मेलनों में भाग लिया है।आप अपना सम्पूर्ण जीवन वेद्सेवा में समर्पण हेतु दृढसंकल्पित हैं।

उत्तम वेद विद्यालय

श्री शंकर गुरुकुल वेद पाठशाला का शुभारम्भ वर्ष-1984 में काञ्ची कामकोटि पीठ के श्री परमाचार्यजी की कृपा से भाष्यरत्न एवं भारतात्मा वेदार्पित जीवन पुरस्कार-19 से विभूषित श्री आर. वेंकटराम घनपाठीजी द्वारा किया गया। वेंकटरामजी गुरूजी ने तीन विद्यार्थियों के साथ स्वनिवास गृह में परम्परागत श्रुति परम्परानुसार वैदिक शिक्षण प्रणाली के विस्तार हेतु इस पाठशाला की स्थापना की। यह पाठशाला देश की प्रतिष्ठित एवं सभी शंकराचार्यों और मठों से सम्मानित है. पाठशाला के शाताधिक विद्यार्थी आज देश के विभिन्न भागों में वेदसेवा में संलग्न हैं ।